एक डोर में सबको बांधती

एक डोर में सबको बांधती


एक डोर में सबको बांधती
प्रेम रस सदा ही छानती
सबको ही अपना मानती
भेद भाव नहीं मैं जानती।

जो भी मिला अपना लिया
सबको गले लगा लिया
स्नेह ही हरदम सदा दिया
ना कभी शिकवा किया।

मैं रस की भरी तरंग
मैं हर दिल की उमंग
मैं भावनाओं के संग
मैं शब्दों में हूं रसरंग।

जिस की जुबां पे चढ़ जाऊं
मिश्री बन फिर घुल जाऊं
मैं सहज सरल शब्दों की हूं थाती
मैं हिंदी हूं जिसे चाहे हर भारतवासी।।

आभार – नवीन पहल – ०१.०७.२०२३ 🙏💐

# प्रतियोगिता: आधे अधूरे मिसरे/ प्रसिद्ध पंक्तियां


   7
2 Comments

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन रचना

Reply

Alka jain

01-Jul-2023 10:46 PM

Nice one

Reply